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फसल चक्र (Crop Rotation)

फसल चक्र (Crop Rotation)

फसल चक्र (Crop Rotation)

फसल चक्र (Crop Rotation)

फसल चक्र (Crop Rotation)

एक ही भूमि पर ऋतु के अनुसार बदलकर सब्जियाँ उगाने के निश्चित क्रम को फसल चक्र कहते हैं। एक प्रकार की सब्जी को लगातार उसी भूमि पर उगाना त्रुटिपूर्ण है। इससे उपज तो घटती ही है, अनेक समस्याएं भी आ सकती हैं। सब्जी उत्पादन में उचित फसल चक्र अपनाना सफल सब्जी उत्पादन के लिए अनिवार्य है।

फसल चक्र के उद्देश्य (Objectives of Crop Rotation)

(1) भूमि में उपस्थित पोषक तत्त्वों का पूर्ण सक्षमता से उपयोग हो, इसके लिए आवश्यक है कि उस भूमि में बदलकर ऐसी सब्जियाँ लें जिनकी पोषक तत्त्वों की आवश्यकता भिन्न हों तथा उनकी जड़ें भिन्न-भिन्न गहराई तक फैलने वाली हों। ऐसा करने से भूमि के सभी स्तर से पोषक तत्त्वों का शोषण होता है।

(2) भूमि जल के समुचित उपयोग के लिए सब्जियों को बदलकर उगाना चाहिए, जिससे कि भिन्न-भिन्न जल की आवश्यकता बाली सब्जियाँ भूमि से समान रूप में जल ग्रहण करें और भूमि में जल का सन्तुलन बिगड़ न जाए।

(3) भूमि के भौतिक गुण उत्तम बनाए रखने के लिए सब्जियों का क्रम बदल देना चाहिए। विभिन्न सब्जियों के लिए औद्योगिक क्रियाएँ भिन्न-भिन्न होती हैं। इसलिए भूमि में अलग-अलग रूप में ये क्रियाएँ की जाती हैं। ऐसा करने से भूमि की भौतिक दशा सुधरती है ।

(4) पूर्व फसल के पौधों द्वारा छोड़े गये हानिकारक अवशेषों को समाप्त करने के लिए भी सब्जियों का क्रम बदल देना चाहिए। ऐसा सम्भव है कि एक ही प्रकार की सब्जियों के उगाने से उनकी जड़ों द्वारा ऐसे अवशेष छोड़ें जाएँ जिससे भूमि का रासायनिक सन्तुलन बिगड़ जाय ।

(5) रोग एवं कीड़ों का नियन्त्रण भी सब्जियाँ बदलकर उगाने से आँशिक रूप में होता है। एक ही रोग या कीड़े सभी प्रकार की सब्जियों को आक्रमित नहीं कर सकते हैं। अतः उनका फैलाव या स्थायित्त्व कम होता है या नहीं होने पाता है। कुछ रोगों को तो रोकने का एकमात्र उपाय उचित फसल चक्र अपनाना ही होता है जैसे बैंगन का सूखा रोग आदि ।

उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सब्जी उत्पादन के लिए फसल चक्र तैयार करते समय नियम अपनाए जाने चाहिए :-

(1) एक कुल की सब्जियों के पश्चात् दूसरे कुल (Family) की सब्जियाँ लगाएँ। टमाटर, बैंगन, मिर्च सोलेनेसी कुल की हैं और लौकी, कुम्हड़ा आदि कुकुरबिटेसी कुल की हैं। जैसे टमाटर-लौकी, बैंगन- कुम्हड़ा आदि ।

(2) भूमि को नाइट्रोजन देने वाली सब्जियों के पश्चात् नाइट्रोजन अधिक चाहने वाली सब्जियाँ लगाएँ। कुछ सब्जियों की जड़ों में ऐसे सूक्ष्म जीवाणु होते हैं जो वायुमण्डल से भूमि में नाइट्रोजन स्थिर करते हैं जैसे बरबटी, मटर, फ्रेंचबीन आदि ।अन्य सब्जियों में यह गुण नहीं होता है। जैसे, बरबटी आलू, भिंडी-मटर, बरबटी-टमाटर आदि ।
(3) अधिक जल चाहने वाली सब्जियों के पश्चात् कम जल चाहने वाली सब्जियाँ उगाएँ। टमाटर, आलू, बैंगन, भाजियाँ, फूलगोभी आदि अधिक पानी चाहती हैं जबकि मटर, बरवटी, मूली, गाजर, लहसून आदि कम पानी चाहती हैं । जैसे, टमाटर- बरवटी (ग्रीष्म), भिंडी-फ्रेंचबीन आदि ।

(4) उथली जड़ों वाली सब्जियों के पश्चात् गहरी जड़ों वाली सब्जियाँ उगाएँ । उथली जड़ों वाली सब्जियाँ हैं — फूल गोभी, पत्ता गोभी, प्याज, लहसुन, मटर, फ्रेंचबीन तथा पत्तेदार भाजियाँ तथा गहरी जड़ों वाली सब्जियाँ – कद्दू, लौकी, कुंदरु, परवल, भिंडी आदि हैं। जैसे- मटर-कद्दू, टमाटर – लौकी

(5) जड़ वाली सब्जियों के पश्चात् पत्तेदार सब्जियाँ उगाएँ। मूली, गाजर, शलजम, चुकन्दर के पश्चात् पत्तेदार सब्जियाँ, पालक, मेथी, चौलाई आदि। मूली-पालक, गाजर- – चौलाई आदि । कंद सब्जियों में आलू, प्याज, शकरकन्द, जिमीकंद, अदरक, घुइयाँ आदि हैं तथा मटर, सेम, ग्वार फली आदि दाने वाली सब्जियाँ हैं। जैसे प्याज-बरवटी, मटर- जिमीकन्द ।

(6) कन्द वाली सब्जियों के पश्चात् दाने वाली या फल वाली सब्जियाँ उगाएँ कन्द सब्जियों में आलू, प्याज, शकरकन्द, जिमिकन्द, अदरक घुइयाँ आदि हैं तथा मटर, सेम, ग्वारफली आदि दाने वाली सब्जियाँ हैं। जैसे- प्याज – बरबटी, मटर- जिमीकन्द।

सब्जी प्रक्षेत्र का प्रबन्ध (Management of Vegetable Farm) –

सब्जी प्रक्षेत्र का प्रबन्ध फलोद्यान के – प्रबन्ध की तरह स्थाई प्रकृति का नहीं होता । उद्यान प्रबन्ध में वृक्ष की निरन्तर देखभाल उनसे अधिकाधिक फलन प्राप्त करने के लिए की जाती है और एक ही किस्म की उद्यानिक क्रियाएँ प्रति वर्ष समयानुसार सम्पन्न की जाती हैं। सब्जी प्रक्षेत्र में प्रबन्ध परिवर्तनशील है। ऐसा भी हो सकता है कि किसी परिस्थितिवश जिसकी काश्त पिछली वर्ष की गई थी इस वर्ष न की जाय। बाजार की आवश्यकतानुसार सब्जी उगाने का क्रम बदल भी सकता है। सब्जी उत्पादन के क्रम में परिवर्तन होने से प्रबन्ध में भी परिवर्तन होता है। इस प्रबन्ध के अन्तर्गत निम्न क्रियाएँ की जाती हैं।

(1) खेत की तैयारी (Field Preparation)

(2) सब्जी पौध तैयार करना (Raising of Vegetable Seedlings)

(3) बीज बोना और प्रतिरोपण (Sowing and Transplanting)

(4) सिंचाई ( Irrigational Requirement)

(5) खाद और उर्वरक देना ( Manures and Fertilization)

(6) कृषि क्रियाएँ (Cultural Operation)

(7) पौध संरक्षण (Plant Protection)

(8) तुड़ाई (Picking)

(9) विक्रय (Marketing)

(1) खेत की तैयारी (Field Preparation) चुने हुए सब्जी प्रक्षेत्र के स्थल में प्रारम्भिक तैयारी के पश्चात् जिसके अन्तर्गत अन्तिम समतलीकरण किया जाता है, प्रक्षेत्र में दो तीन बार जुताई करनी चाहिए तथा पाटा चलाना चाहिए। प्रत्येक भूखण्ड को सब्जियों की आवश्यकतानुसार ऐसी क्यारियाँ तैयार करनी चाहिए, जिससे कि खाद देने, सिंचाई करने, गुड़ाई करने तथा मिट्टी चढ़ाने, दवाएँ छिड़कने में सरलता हो । क्यारियाँ 3 x 2 मी. या लम्बी पट्टियाँ 5 x 2 मी. आकार की सब्जियों के अनुसार बनाई जा सकती हैं। दो क्यारियों के 1 मध्य इतना स्थान अवश्य छोड़ा जाना चाहिए कि उस पर चलकर छिड़काव आदि क्रियाएँ सरलता से की जा सकें । क्यारियों का ढाल उतना हो तथा इस प्रकार हो कि पानी प्रत्येक स्थान पर सुगमता से पहुँच जाय किन्तु मिट्टी कटकर बह न सके । कंद सब्जियों के लिए मिट्टी को अधिक भुरभुरी बनाना आवश्यक है, जबकि अन्य सब्जियों में ऐसी आवश्यकता नहीं होती है।

(2) सब्जी पौध तैयार करना (Raising of Vegetable Seedlings) कुछ सब्जियों के बीज सीधे ही खेत में बुवाई करते हैं, जैसे- आलू, भिंडी, मटर, बरबटी, सेम, ग्वारफली, मूली, कद्दू वर्गीय सब्जियाँ और पत्तेदार भाजियाँ आदि। कुछ सब्जियों की पौध तैयार कर खेत में लगायी जाती हैं, जैसे- मिर्च, टमाटर, बैंगन, फूल गोभी, पत्ता गोभी, गाँठ गोभी आदि । कुछ अन्य सब्जियों की कलम लगाई जाती है, जैसे- परवल, कुंदरु, शकरकंद आदि । सब्जियों की पौध तैयार करने की विधि नर्सरी के अन्तर्गत देखें ।

(3) बीज बोना तथा पौध प्रतिरोपण करना (Sowing and Transplanting) – सब्जियों के बीज कोमल होते हैं। अतः उन्हें अधिक गहराई में न बुवाई कर ऊपर से मिट्टी या खाद ढक देना चाहिए। अर्थात् 2.5 सेमी की गहराई पर बोएँ। बीज सदैव कतारों में बोएँ। बीज बोने का समय चक्र चित्र – 3.22 में देखें। बीज उचित दवाइयों से उपचारित कर बोने से रोग का आक्रमण कम होता है। सब्जियों की पौध जब 4 पत्तियों वाली या 20 सेमी ऊँची या लगभग एक माह की हो जाने के पश्चात् खेत में प्रतिरोपित (Transplanting) करें। सायंकाल का समय पौध लगाने के लिये उत्तम होता है। पौध लगाने के पश्चात् तुरन्त ही सिंचाई करना आवश्यक है। सिंचाई हल्की होनी चाहिए । प्रतिरोपण से पौध की जड़ों की हल्की छँटाई हो जाती है, जिससे पौधे बढ़ने में सहायता मिलती है।

(4) सिंचाई ( Irrigational Requirement) सब्जियों में सिंचाई की अधिक आवश्यकता होती है। सिंचाई के जल की आवश्यकता और अन्तर सब्जियों के ऊपर निर्भर करता है। सब्जियों में सिंचाई क्यारियाँ बनाकर की जाती है। सिंचाई करने का उपयुक्त समय प्रात: काल या सांयकाल होता है, दोपहर में सब्जियों में पानी नहीं देना चाहिए ।

(5) खाद एवं उर्वरक देना ( Manures and Fertilization) उचित समय और मात्रा में सब्जियों में खाद और उर्वरक देना उचित उपज प्राप्त करने में अनिवार्य क्रिया है । खाद खेत की तैयारी के समय दी जाती है, जबकि उर्वरक खड़ी फसल में दिए जाते हैं। खाद और उर्वरक की सन्तुलित मात्रा ही खेत में दें। मात्र उर्वरक ही देते रहने से भूमि की भौतिक और रासायनिक दशा बिगड़ सकती है। सब्जियों के उत्पादन में जीवांश की मात्रा महत्त्वपूर्ण है। विस्तृत विवरण पौध रोपण के अन्तर्गत देखें।

(6) कृषि क्रियाएँ (Cultural Operation) निंदाई, गुड़ाई, मिट्टी चढ़ाना- सब्जी उगाने में खरपतवार होने की जटिल समस्या रहती है । खेत से खरपतवार निकालने में व्यय भी अधिक आता है। यदि इनको खेत से न निकाला गया तो उचित उपज नहीं मिलती है। खेत की खरपतवार या नींदा निकालने के लिए मजदूरों द्वारा निदाई करानी पड़ती है तथा इसमें व्यय अधिक होता है। अतः इनके नियंत्रण के लिए कुछ रसायनों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें नींदानाशक दवाएँ (Herbicides or Weedicides) कहते हैं। ये नींदानाशक दवाएँ अलग-अलग रूप में अलग-अलग नींदा नियंत्रण करने में प्रभावशाली होती हैं। इनको दो अवस्थाओं में उपयोग किया जाता है- बीज जमने चित्र 3.22 – सब्जियों के बीज बोने का समय चक्र के पूर्व (Pre-Emergence), बीज जमने के पश्चात् (Post- Emergence)। इनका उपयोग दवाओं की प्रकृति, नींदा का प्रकार तथा सब्जियों के प्रकार के अनुसार किया जाता है। बीज जमने के पूर्व, दवाओं का उपयोग बीज बोने के पूर्व खेत की तैयारी के समय या बीज बोने के पश्चात् और बीज अंकुरण के पहले इन दवाओं को मिट्टी में मिला दिया जाता है, इन दवाओं के संसर्ग में आकर नींदा के बीज नष्ट हो जाते हैं या उसे अवशोषित कर मर जाते हैं। बीज जमने के पश्चात् दवाओं का उपयोग नींदा या खरपतवार पर छिड़काव कर दिया जाता है, जब नींदा 2 से 3 पत्तियों वाले होते हैं। इन दवाओं के उपयोग में वही सावधानियाँ अपनानी चाहिए जो कीटनाशक या रोगनाशक दवाओं के उपयोग में अपनाई जाती है (देखें पौध संरक्षण) । कुछ दवाएँ जो अधिकांशतः उपयोग की जाती हैं, वे हैं – 2,4-डी. (2,4- D), डाला-पॉन (Dalapon), टोक- 25 (Toke-25), ई.पी.टी.सी. (E.P.T.C.), एम.सी.पी.बी. (M.C.P.B.), सिमैजिन (Samazine) आदि। ये दवाएँ सब्जियों के अनुरूप तथा उनके लिए हानिरहित होनी चाहिए। यद्यपि नींदानाशक दवाओं से नींदा नियंत्रण में लागत कम आती है, किन्तु मजदूरों से निंदाई कराने पर सब्जियों में गुड़ाई भी हो जाती है, जिससे सब्जियों को भूमि में भुरभुरापन प्राप्त होता है ।

गुड़ाई भी भूमि को भुरभुरा बनाने, खरपतवार निकालने, सूर्य प्रकाश तथा वायु का भूमि में प्रवेश होने देने के उद्देश्य से की जाती है । सामान्यतः प्रत्येक सिंचाई के पश्चात् हल्की गुड़ाई आवश्यक होती है, क्योंकि सिंचाई से मिट्टी की ऊपरी तह पर पपड़ी बन जाती है और सूर्य प्रकाश तथा वायु का प्रवेश बन्द हो जाता है। गुड़ाई सदैव हल्के रूप में होनी चाहिए, जिससे कि सब्जियों तथा जड़ों को हानि न पहुँचे । अतः गुड़ाई हल्के यंत्रों, जैसे- खुरपी, छोटी कुदाली, हो और रैक से की जाती है ।

मिट्टी चढ़ाने की क्रिया कंद फसलों में अनिवार्य रूप से की जाती है, जैसे आलू, प्याज, लहसून, शकरकंद, मूली, गाजर, अदरक, घुइयाँ आदि। पनपते हुए कंद सूर्य के प्रकाश में न आएँ और भूमि के अन्दर ही बढ़ सकें, इसलिए मिट्टी चढ़ाना आवश्यक होता है। पौधे के चारों ओर की या बगल की मिट्टी खींचकर पौधे के समीप ला दी जाती है, जिससे वह स्थान कुछ ऊँचा हो जाता है, इसे मिट्टी चढ़ाना कहते हैं। मिट्टी चढ़ाने का कार्य भी हल्के यंत्रों से, जैसे- फावड़ा, हो एवं रैक आदि से किया जाता है

(7) पौध संरक्षण (Plant Protection) सब्जियों में रोग और कीट अधिक लगते हैं। यदि इनका समयानुसार नियन्त्रण न किया गया तो भारी हानि होने की संभावना रहती है। सब्जियों में रोग की दशा, दवाओं का चुनाव तथा उन्हें उचित मात्रा का आँकलन कर दिये जाने से ही सक्षम रोग नियंत्रण हो पाता है। रोग निरोधी जातियों का उपयोग सर्वोत्तम साधन है।

(8) सब्जियों की तुड़ाई (Picking)फलों की तरह सब्जियाँ तोड़ने के पश्चात् नहीं पकती हैं, अतः उन्हें पूर्ण परिपक्व या विकसित हो जाने पर ही तोड़ना चाहिए। इसके साथ यह भी महत्त्वपूर्ण है कि यदि उनके पकने की दशा से थोड़ा या अधिक समय पश्चात् तोड़ा जाय तो उनके गुणों पर विपरीत असर होता है। मटर, बरबटी, फ्रेंचबीन, सेम, ग्वार, भिंडी, मूली आदि सब्जियाँ तोड़ने में विलम्ब होने पर उनके गुणों पर विपरीत असर होता है। आलू, प्याज तथा अन्य कंद पूर्णतया विकसित हो जाने पर खोदना चहिए। कंद फसलों में पकने की दशा उनके मुरझाये हुए पौधों से विदित होती है। अधिकांशतः सब्जियों की तुड़ाई हाथ से की जाती है और अधिकांश सब्जियों में अनेक बार तुड़ाई करनी होती है। तोड़ते समय उनका डण्ठल सब्जियों के साथ लगा रहना चाहिए। इससे नुकसान कम होता है और सब्जियाँ अधिक समय तक ताजी रहती हैं। पेटियों में पैक करते समय डण्ठल अलग कर देना चाहिए ।

(9) विक्रय (Marketing)तोड़ी हुई सब्जियाँ बिना किसी क्षति या हानि के बाजार में उपभोक्ताओं को प्राप्त हो सके, यही उत्तम विक्रय अवस्था है। सब्जियों को तोड़ने के पश्चात् अधिक समय तक प्रक्षेत्र में रखना उचित नहीं है। उन्हें छाँटकर, धोकर और उचित साधनों में रखकर शीघ्रं ही बाजार भेजने की व्यवस्था करना उचित है। स्थानीय बाजारों के लिए प्रातःकाल तुड़ाई करनी चाहिए, जिससे वे ताजी हालत में बाजार में पहुँचे । दूरस्थ बाजारों तथा उद्योगों के लिए उनकी आवश्यकता के अनुसार तुड़ाई करनी चाहिए ।

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