भारत दुनिया भर में आम का सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसकी देश भर में 1000 से अधिक किस्में उगाई जाती हैं। आम भारत में सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण फल है, और इसकी खेती हजारों वर्षों से की जाती रही है। आम के पेड़ को हिंदू धर्म में भी पवित्र माना जाता है, और इसका उपयोग अक्सर पारंपरिक भारतीय चिकित्सा में किया जाता है।
भारत में आम की कुछ सबसे लोकप्रिय किस्मों में अल्फांसो, केसर, बादामी, दशहरी और तोतापुरी शामिल हैं। ये आम अपने मीठे, रसीले गूदे और सुगंधित सुगंध के लिए जाने जाते हैं। भारत में, आमों को अक्सर ताज़ा ही खाया जाता है, लेकिन इनका उपयोग कई प्रकार के व्यंजनों में भी किया जाता है, जिनमें चटनी, करी, अचार और मिठाइयाँ शामिल हैं।
भारत में आम का मौसम आम तौर पर मार्च से जुलाई तक चलता है, और इस समय के दौरान देश भर में फलों का जश्न मनाने के लिए आम के त्योहार आयोजित किए जाते हैं। उत्तर प्रदेश का मलिहाबाद शहर अपने आमों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है, और यह एक वार्षिक आम उत्सव का आयोजन करता है जो हजारों आगंतुकों को आकर्षित करता है।
भारत में आम की लोकप्रिय Varieties
दशहरी (दशहरी अमीन) – यह उत्तर प्रदेश, पंजाब और दिल्ली की सर्वोत्तम किस्म है। उत्पत्ति स्थान एक गाँव है जो कि लखनऊ और मलीहाबाद के बीच में है। मध्यम अवधि (मध्य जून से जुलाई अन्त) में पकने वाली किस्म है। स्वाद उत्तम होता है इसलिए समस्त भारत में लोकप्रिय है। वृक्ष, मध्यम ऊँचाई तथा फैलने वाले तथा शीर्ष गोलाकार होता है। फल, मध्यम से छोटे, भारत 125-250 ग्राम, आयताकार, आधार और शीर्ष गोलाकार, पीला रंग, पतला छिलका, गूदा रेशा रहित, अत्यन्त प्रिय, गुठली छोटी होती है। कुरचना (Malformation) रोग अधिक लगता है। कुल उत्पादन में इस किस्म का भाग 8% है।
लंगड़ा – उत्तर भारत की दशहरी के पश्चात् व्यापारिक किस्म है। उत्पत्ति स्थान बनारस के समीप गाँव है। शीघ्र से मध्यम अवधि की किस्म (मई अन्त से जुलाई अन्त) वृक्ष फैलने वाली प्रकृति के, मध्यम फैलने वाले और शीर्ष गोलाकार होता है। फल मध्यम आकार के अण्डाकार होते हैं। चोंच (Beak) छोटी किन्तु स्पष्ट होती है। शीर्ष गोलाकार होता है। रंग हरा, गूदा रेशा रहित, तीव्र सुगन्ध वाला जो प्रिय होता है। स्वाद अत्यन्त मीठा होता है। गुठली छोटी होती है। संग्रहण क्षमता कम होती है । विपुल उत्पादन देने वाली किस्म है। इस किस्म को बनारसी लंगड़ा, लंगड़ीह, रुह-आफ्जा तथा हर दिल अजीज भी कहते हैं। कुल आम उत्पादन में इस किस्म का अंश 4% है
अलफांसो या बदामी या हापुस- महाराष्ट्र, मैसूर, मद्रास और आन्ध्रप्रदेश की प्रमुख किस्म है । समस्त भारत में लोकप्रिय है । यह किस्म उत्तम गुणों वाले फलों तथा संग्रहण गुणों के लिए प्रसिद्ध है। कैनिंग के लिए भी उपयुक्त होती है। इसका नामकरण डी अल्फांसो ( De – Alphonso ) नाम फ्रेंच निवासी के नाम पर किया गया है। वृक्ष मध्यम से बड़े, ओजस्वी, ऊँचे और शीर्ष अण्डाकार होता है। फल मध्यम, 250 से 350 ग्राम भार के तिर्यक या तिरछे अण्डाकार, आधार चपटा, शीर्ष गोलाकार, चोंच नहीं होती है। स्वाद अत्यन्त मीठा, रंग पीला किन्तु छिलका मोटा होता है। मध्यम अवधि (अप्रैल से मध्य जुलाई) की किस्म है। गूदे में स्पंजी ऊतक का निर्माण अधिक होता है। इसके अन्य नाम गूडू (मद्रास) आपुस या हापुस हैं। कुल आम उत्पादन में इस किस्म का भाग 2% है ।
बैंगनपल्ली या सफेदा या वैनेशन- आंध्रप्रदेश और मद्रास की व्यापारिक किस्म है। नमी युक्त क्षेत्रों में अच्छा उत्पादन नहीं हो पाता है। भारी उत्पादक और मध्यम अवधि (अप्रैल-जून) की समस्त भारत की लोकप्रिय किस्म है। फल बड़े 300- 500 ग्राम भार के, तिरछे रूप में अण्डाकार, आधार तिरछे रूप में चौरस, शीर्ष चौड़ा और नुकीला, छिलका पतला, चिकना, चमकदार तथा पीला सुनहला, रेशा रहित तथा स्वाद अच्छा होता है । मैंगो हापर और तेज हवा से शीघ्र प्रभावित हो जाती है । इस किस्म को वैनेशन चपटाई भी कहते हैं। कुल आम उत्पादन में इस किस्म का भाग 6.5% है।
तोतापरी या बैंगलोरा – दक्षिण भारत की विपुल उत्पादन देने वाली किस्म है, जिसमें प्रति वर्ष फल देने का गुण होता है। मध्यम अवधि (मई-जून) में तैयार होने वाली किस्म है। संग्रहण गुण अति उत्तम होता है। वृक्ष ओजस्वी, फैलने वाला, शीर्ष गोलाकार होता है। फल मध्यम 300-500 ग्राम भार के आयताकार, आधार नुकीला, चोंच स्पष्ट तथा शीर्ष चौड़ा नुकीला होता है । छिलका मोटा, सुनहला रंग, स्वाद कुछ खट्टा तथा मीठा, गूदा रेशेदार होता है। कुल आम उत्पादन में इस किस्म का भाग 3.5% है।
बाम्बे ग्रीन (उत्तर भारत) – उत्तर भारत की किस्म है। शीघ्र तैयार होने वाली (मई-जून) तथा विपुल उत्पादन देने वाली किस्म है । फल मध्यम अण्डाकार लिये हुए आयताकार, आधार चपटा, शीर्ष गोलाकार से चौड़ा नुकीला, छिलका मोटा, रंग हरा, गूदा मीठा, रेशा रहित, सुगन्ध तेज एवं प्रिय । गुठली मध्यम, संग्रहण गुण अच्छा होता है। इसे सरोली भी कहते हैं । बाम्बे यलो, जिसका रंग पीला होता है, इससे मिलती-जुलती है ।
फजली – पूर्वी भारत की किस्म है, जो उत्तर प्रदेश में भी उगाई जाती है। देर से तैयार होने वाली (मध्य जून-जुलाई), भारी उत्पादन देने वाली किस्म है। वृक्ष मध्यम, ओजस्वी, शीर्ष गोलाकार होता है। फल बड़े 400-500 ग्राम भार के तिरछे आयताकार, आधार तिरछा गोलाकार, शीर्ष गोलाकार, रंग हल्का होता है। गूदा मीठा तथा स्वाद युक्त होता है। इससे मिलती- जुलती अन्य किस्में- फजरी जाफरानी (उत्तर प्रदेश), फजली माल्दा (पश्चिमी भारत) हैं। कुल आम उत्पादन में इस किस्म का अंश 3.0% है ।
चौसा या समर बहिश्त चौसा – यह देर से तैयार होने वाली (जुलाई से अन्त-सितम्बर) उत्तर प्रदेश की सर्वोत्तम व्यापारिक किस्म है. जो कि अधिक गुणों वाली होने के कारण अधिक लाभ देती है। इसका उत्पत्ति स्थान चौसा है, जो सैन्डीला के समीप मलीहाबाद में माना जाता है। विपुल उत्पादन देती है। फल मध्यम, 250-350 ग्राम भार के अण्डाकार से तिरछे अण्डाकार, आधार तिरछा चपटा, चोंच स्पष्ट, शीर्ष गोलाकार, रंग पीला, गूदा पीला, रेशा रहित, स्वाद मीठा होता है। कुरचना रोग अधिक लगता है। कुल उत्पादन में इस किस्म का अंश 1.5% है।
नीलम – यह दक्षिण भारत की महत्त्वपूर्ण व्यापारिक किस्म है जो देर से तैयार होती है (जून-अगस्त) । नियमित रूप से प्रति वर्ष फलना इस किस्म की विशेषता है। संग्रहण गुण भी अधिक है । वृक्ष मध्यम ओजस्वी, शीर्ष गोलाकार होता है। फल मध्यम, 150-250 ग्राम भार के तिरछा, अण्डाकार, आधार तिरछे रूप में फैलता हुआ समतल, शीर्ष गोलाकार, पीला रंग, चोंच एक बिन्दु के रूप में होती है। गूदा मीठा, रेशा रहित होता है। फलों का गुण उत्तम नहीं होता है। विपुल उत्पादन देने वाली किस्म है। कुल उत्पादन में इस किस्म का अंश 3% है।
हिमसागर – यह पश्चिम बंगाल की व्यापारिक और प्रसिद्ध जाति है। फलों का भार 250-300 ग्राम होता है जो अण्डाकार पीला हरा रंग लिए होता है। छिलका कुछ खुरदुरा होता है। स्वाद मीठा तथा विशेषता लिए होता है। यह जून के दूसरे सप्ताह में तैयार हो जाती है। यह विपुल उत्पादन देने वाली किस्म है।
केसर- यह गुजरात की प्रसिद्ध किस्म है। फलों का आकार मध्यम से बड़ा होता है। औसत फल भार 250 से 350
ग्राम होता है। आकार आयताकार तथा रंग आकर्षक खुबानी पीला होता है। स्वाद, शक्कर और अम्लता के उचित मिश्रण के कारण उत्तम होता है । जरदालु – यह बिहार (भागलपुर) की विशेष किस्म है। फल आयताकार, अण्डाकार आकर्षक खुबानी – पीला होता है। फलों का भार 150-200 ग्राम होता है। यह जून के अंत में तैयार होती है। फलों का गुण उत्तम तथा सुगन्ध अच्छी होती है, जो पसंद की जाती है ।
राजापुरी – यह गुजरात की एक और किस्म है। फलों का आकार गोलाकार से गोल- लम्बा (Ovate-oblong ) होता है, जिसमें फल के ऊपरी एक तिहाई भाग में गुलाबी चमकदार आभा होती है और पृष्ठ भूमि सुनहली-पीली आभा होती है। बीक (Beak) अधिक स्पष्ट होती है। फलों का भार 350 से 500 ग्राम तक होता है। औसत फल वाली किस्म है जो जून के प्रारम्भ में ही तैयार हो जाती है।
गुलाबखाश – शीघ्र तैयार होने वाली (मई अन्त-मध्य जून) पूर्वी भारत की किस्म है। फल में गुलाब जैसी सुगन्ध आने के कारण इसको गुलाब खाश नाम दिया गया है। फल मध्यम 100-200 ग्राम भार में तिरछा आयताकार, आधार पतला होता हुआ, शीर्ष गोलाकार, चोंच स्पष्ट होती है। छिलका मोटा, इलायची रंग का होता है। संग्रहण क्षमता अधिक है ।
पैरी (रस पुरी) – शीघ्र फलने वाली (अप्रैल-जून) तथा भारी उत्पादन देने वाली पश्चिमी भारत की अल्फांसो के पश्चात् दूसरी महत्त्वपूर्ण किस्म है। मद्रास, आंध्र प्रदेश एवं महाराष्ट्र में उगाई जाती है। समुद्र के नमीं युक्त तटवर्ती क्षेत्र अधिक उपयुक्त होते हैं। वृक्ष बड़ा, ओजस्वी फैलने वाला होता है। फल- मध्यम, 200-250 ग्राम भार के अण्डाकार, आधार तिरछा, समतल, चोंच उठी हुई चौड़ी, शीर्ष गोलाकार, रंग हल्का पीला, स्वाद अत्यंत मीठा होता है। कुल उत्पादन में इस किस्म का अंश 1.5% है ।
मलगोआ – देर से फलने वाली दक्षिण तथा दक्कन की किस्म है। देर से पकने के कारण गुठली में कीड़ा लग जाता है। वृक्ष धीमे रूप में बढ़ते हैं। फल — बड़े तिरछे गोल, आधार तिरछा, समतल शीर्ष गोलाकार, चोंच स्पष्ट, रंग पीला, सुगन्ध मनमोहक स्वाद अत्यन्त मीठा होता है।
सुन्दरजा – मध्यम अवधि में तैयार होने वाली किस्म है। उत्पत्ति स्थान रीवा (म.प्र.) माना जाता है और मध्यप्रदेश में सीमित क्षेत्रों में होती है। फल- मध्यम, 200-250 ग्राम भार के मध्यम तिरछा अण्डाकार, आधार चपटा गोल, शीर्ष तिरछा समतल, आकर्षक पीला रंग, स्वाद उत्तम होता है।
गाजरिया – बैतूल (मध्यप्रदेश) जिले की प्रसिद्ध किस्म है। फल मध्यम से बड़ा होता है। आकार आयताकार अण्डाकार, आधार थोड़ा चपटा, चोंच स्पष्ट, शीर्ष नुकीला, स्कंध उठा हुआ गोलाकार, रंग हरा (स्कंध पर हल्का) पकने पर पीला-हरा, छिलके पर सफेद हल्के धब्बे, छिलका मध्यम से मोटा, गूदा रसदार तथा अधिक मीठा होता है, जिसमें अनन्नास की सुगन्ध होती है। गूदा गाजर के रंग का होने के कारण इसे गाजरिया कहते हैं । फलने का समय 15 मई से अन्तिम जून है ।
दहियर – भोपाल क्षेत्र की रसदार श्रेष्ठ किस्म है। फलों में दही की सुगन्ध आने के कारण इसे दहियर कहा जाता है । फल छोटा से मध्यम, आकार तिरछापन लिये हुए अण्डाकार, आधार तिरछा और चपटा, चोंच एक बिन्दु के समान, गोलाकार चौड़ा, स्कंध उठा हुआ गोलाकार, रंग पकने पर पीला-हरा, छिलका मोटा, गूदा रसदार, मीठा, हल्का पीला, रेशा रहित और दही में शक्कर मिश्रित सुगन्ध वाला होता है । फलने का समय 15 जून से 15 जुलाई है ।
करेला – भोपाल क्षेत्र की किस्म है जो कि मुरब्बा बनाने के लिए उपयुक्त होती है। फलों में करेला के समान उठाव होने के कारण इसे करेला कहते हैं। फल मध्यम से बड़ा, गुर्दे के आकार का अण्डाकार होता है। आधार गोलापन लिये हुए तिरछा, शीर्ष गोलाकार, चोंच स्पष्ट, स्कंध गोलाकार, रंग पकने पर भी हरा (पकने पर छिलके में सफेद धब्बे आ जाते हैं), छिलका मोटा, गूदा मध्यम रस वाला पीला, मीठा और रेशा रहित तथा मनमोहक सुगंध युक्त होता है । फलने का समय 15 जून से 15 जुलाई है
खिरामा – रीवा क्षेत्र की किस्म है जो कच्चे रहने पर भी कम खट्टी तथा खीरा के समान होती है। फल मध्यम, आकार गुर्दे के समान अंडाकार, आधार धंसा हुआ, शीर्ष चौड़ा गोलाकार, स्कंध ढलावदार, चोंच थोड़ी स्पष्ट, रंग नारंगी, पीला तथा आधार – पीला, शेष फल पीला छिलका पतला, गूदा मीठा रेशा वाला होता है। संग्रहण क्षमता कम होती है ।
बहुभ्रूण किस्में (Polyembryonic Varieties) – ओलूर, बप्पाकाई, बेलारी, चंद्रकिरण, गोआ, कुरूक्कन, माइलेपेलियम, नीलेश्वर ड्वार्फ एवं सलेम आदि । ये किस्में दक्षिणी भारत विशेषकर केरल प्रदेश की हैं। इन किस्मों के अतिरिक्त कुछ विदेशी किस्में हैं, जैसे- कम्बोडियाना, कारावाओं, कोराजोन, पाहो, पाहुटान, पिको, सेनोरा एवं स्ट्राबेरी आदि उपर्युक्त किस्मों में कुछ न कुछ कमियाँ हैं ।
एक आदर्श आम की किस्म में निम्न गुण होने चाहिए ।
- आम के वृक्ष छोटे कद के हों, जिन्हें 3 या 4 मी. के अंतर से लगाया जा सके ।
- नियमित फलने वाली होनी चाहिए ।
- फल मध्यम आकार के होने चाहिए (एक किलो में 5 फल)
- फलों का रंग सुनहला-पीला, जिसके ऊपरी भाग में लाल आभा हो । गुठली छोटी, गूदा अधिक कम रेशा वाला, एक समान, उत्तम सुगंध, सुरुचिकर और शक्कर अम्ल का अनुपात उचित होना चाहिए ।
- कुरचना (Malformation), कवक तथा अन्य रोगों के प्रति सहनशील होना चाहिए ।
- फलों की संग्रहण क्षमता अधिक होनी चाहिए।
- परिरक्षण के पश्चात् उत्तम गुणों को स्थिर रख सकने की क्षमता हो ।
उपर्युक्त उद्देश्यों को पूरा करने हेतु विभिन्न स्थानों पर संकरण का कार्य प्रगति पर है। कुछ प्रमुख संकर किस्में, जो विकसित की गईं, इस प्रकार हैं। :-
मल्लिका – यह दशहरी (नर), नीलम (मादा) किस्मों के संकरण से भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। फलों का औसत भार 300 ग्राम होता है। फलों का रंग खुबानी पीला होता है । यह नियमित रूप से फलने वाली किस्म है ।
आम्रपाली – यह दशहरी (मादा), नीलम (नर) किस्मों के संकरण से भारतीय कृषि अनुसंधान नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। यह बौनी किस्म है। फलों का औसत भार 143 ग्राम होता है। फलों का आकार लगभग अंग्रेजी के अक्षर S के समान होता है और उनमें शहद के समान सुगंध होती है । उपज 4 वर्ष बाद 11-12 टन / हेक्टेयर, 6 वर्ष बाद 16-17 टन/ हेक्ट. तथा 7 वर्ष बाद 20 टन / हे. प्राप्त होती है। यह नियमित फलने वाली किस्म है ।
रत्ना – यह नीलम तथा अल्फासों के संकरण से फल अनुसंधान केंद्र वेनगुरला ( Vengurla) में विकसित की गई किस्म है। पौधों की ऊँचाई 6.70 मीटर तथा फैलाव 5.7 मीटर होता है । इसमें स्पंजी टिश्यू (Spongy tissue) नामक रोग नहीं लगता है । फल अंडाकार तिरछे (Ovate oblique) और आकार में हल्के लंबे (Elongate) होते हैं। रंग हरापन लिए नारंगी होता है, जिसमें स्पष्ट तेल ग्रंथियाँ होती हैं। गूदा रेशा रहित, सुदृढ़ और गहरे नारंगी रंग का होता है । स्वाद अति उत्तम होता है । यह नियमित फलने वाली किस्म है ।
अर्का अरुणा – यह बैंगनपल्ली और अल्फांसो किस्मों के संकरण से भारतीय उद्यानिकी अनुसंधान संस्थान, बैंगलोर द्वारा विकसित की गई है। फलों का भार 600-800 ग्राम तथा रंग सुनहरा पीला होता है, जिसमें लाल आभा होती है। गूदा 80%, रेशा रहित तथा 20-25% कुल विलेय ठोस वाला होता है। इसमें स्पंजी ऊतक (Spongy tissue) नामक रोग नहीं लगता है । यह अपेक्षाकृत कम ऊँचाई वाली और नियमित फलने वाली किस्म है ।
अर्का पुनीत – यह अल्फांसो तथा बैगनपल्ली किस्मों के संकरण से भारतीय उद्यानिकी अनुसंधान संस्थान, बेंगलोर द्वारा विकसित की गई है। फलों का औसत भार 200-300 ग्राम होता है, जिसमें 3 गहरी धारियाँ शीर्ष में होती हैं, जो इस किस्म की पहिचान है । गुणों में अल्फांसो के समान किंतु स्पंजी ऊतक से मुक्त होती है और नियमित फलती है ।
अर्का अनमोल – यह अल्फांसो और जनार्दन पसंद किस्मों के संकरण से भारतीय उद्यानिकी अनुसंधान संस्थान, बेंगलोर द्वारा विकसित की गई है। फलों का औसत भार 300 ग्राम तथा रंग गहरा पीला होती है। इसमें शर्करा और अम्लता का मिश्रण उत्तम स्वाद निर्मित करता है। इसके निर्यात किये जाने की संभावनाएँ हैं। स्पंजी ऊतक से मुक्त होती है और नियमित रूप से फलती है ।
सिन्धु – यह बीज रहित किस्म है, जो रत्ना और अल्फांसो के संकर पूर्वज संकरण (Back Cross) से कोकण कृषि विद्यापीठ वैनर्गुला, महाराष्ट्र द्वारा विकसित की गई है। इसमें बीज का भार 6.76 ग्राम होता है, जबकि इसके पूर्वज रत्ना में 37 ग्राम और अल्फांसो में 28 ग्राम होता है। इसके फलों का भार 215 ग्राम होता है, जिसमें बीज का भार सिर्फ 3.1% है। यह भी नियमित फलने वाली किस्म है, गुच्छों में फलती है।
अर्का नीलकेरण (Arka Nealkeran ) – यह संकर किस्म भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलोर द्वारा विकसित की गई है। नियमित फलने वाली है। फलों का आकार 260 ग्राम और उपज 12 टन/ हे. होता है। फलों की छाल चिकनी. एक समान और सुनहरा पीला होता है। इसमें 67% गूदा और 19.5% ब्रिक्स होता है।
मंजिरा – यह रूमानी और नीलम किस्मों के संकरण से फल अनुसंधान केंद्र, श्रृंगारेड्डी (आंध्रप्रदेश) द्वारा विकसित की राई है। फल मध्यम आकार के और हलके पीले होते हैं। गूदा रेशा रहित, मीठा और अच्छे गुणों वाला होता है। यह नियमित तथा विपुल उत्पादन देने वाली किस्म है ।
पूसा अरुणिमा — नियमित फलने वाली संकर किस्म है। वृक्ष अर्ध-ओजस्वी, फल का भार 250 ग्राम, छिलके का रंग आकर्षक लाल, गर्दन पर पीला आधार होता है। इसे 6×6 मीटर पर लगाया जाता है। औसत उपज 36.00 किलो प्रति वृक्ष होती है ।
अउ-रुमानी – यह भी रूमानी और नीलम किस्मों के संकरण से फल अनुसंधान केंद्र, श्रृंगारेड्डी द्वारा विकसित की गई हैं। फलों का गूदा सुदृढ़ और उत्तम सुगंध वाला होता है। अधिक उपज देने वाली किस्म है ।
महमूद – बहार – यह बाम्बे और कैलापट्टी किस्मों के संकरण से फल अनुसंधान केंद्र, सबौर द्वारा विकसित की गई है। फलों में उत्तम सुगंध होती है और नियमित रूप में फलती है ।
नीलुद्दीन – यह नीलम और हिमायुद्दीन किस्मों के संकरण से फल अनुसंधान केंद्र, कोदूर द्वारा विकसित की गई है। यह उत्तम गुणों वाले फल देती है और अधिक उपज देती है ।
नीलफान्सों- यह नीलम और अल्फांसों किस्मों के संकरण से फल अनुसंधान केंद्र, पारिया द्वारा विकसित की गई है। यह अच्छे गुणों वाले फल देती है।
नीलेशान – यह नीलम और वेनेशन किस्मों के संकरण से फल अनुसंधान केंद्र, पारिया द्वारा विकसित की गई है। यह अच्छे गुणों वाले फल देती है ।
नीलेश्वर – यह नीलम और दशहरी किस्मों के संकरण से फल अनुसंधान केंद्र, पारिया द्वारा विकसित की गई है। यह अच्छे गुणों वाले फल देती है।
स्वर्ण जहाँगीर— यह चिनस्वर्णरेखा और जहाँगीर किस्मों के संकरण से फल अनुसंधान केंद्र, कोदूर द्वारा विकसित की गई है। इसके फल आकर्षक होते हैं। यह विपुल उत्पादन देने वाली किस्म है।
पी. के. एम. 1 – यह चिनस्वर्णरेखा और जहाँगीर किस्मों के संकरण से तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के केंद्र पेरीयकुलम द्वारा विकसित की गई है। इसके फल झुंड में लगते हैं । यह नियमित फलने वाली किस्म है।
पूसा सूर्या — नियमित फलने वाली, अर्ध ओजस्वी, फल का भार 270 ग्राम, छिलके का रंग खुबानी – पीला होता है। इसे 6×6 मीटर पर लगाना चाहिये। औसत उपज 30.9 किलो प्रति वृक्ष होती है।
अम्बिका – नियमित फलने वाली और अधिक उपज देने वाली किस्म है। फलों का आकार मध्यम, छिलके का रंग पीला तथा गूदा स्थिर (Firm ) होता है । अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए उपयुक्त है ।
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